Saturday, August 15, 2009

प्रेमचंद की विरासत है असाली विरासत

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उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं पर ज़बरदस्त पकड़ थी प्रेमचंद की
प्रेमचंद अपनी कला के शिखर पर बहुत तज़ुर्बे करने के बाद पहुँचे. उनके सामने कोई मॉडल नहीं था सिवाय बांग्ला साहित्य के. बंकिम बाबू थे, शरतचंद्र थे और इसके अलावा टॉलस्टॉय जैसे रुसी साहित्यकार थे. लेकिन होते-होते उन्होंने गोदान जैसा जो मास्टरपीस दिया, मैं समझता हूँ कि वह एक मॉर्डन क्लासिक है.

जब हमारा स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने जो डिस्कोर्स कथा साहित्य द्वारा हिंदी और उर्दू दोनों को दिया उसने सियासी सरगर्मी को, जोश को और आंदोलन को सभी को उभारा और उसे ताक़तवर बनाया. और इससे उनका लेखन भी ताक़तवर होता है.

देखा जाए तो भारतीय साहित्य का बहुत सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा चाहे वह दलित साहित्य हो या नारी साहित्य उसकी जड़ें कहीं गहरे प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं. प्रेमचंद के पात्र सारे के सारे वो हैं जो कुचले, पिसे और दुख का बोझ सहते हुए हैं. प्रेमचंद के साहित्य में पहली बार किसान मिलता है. भारतीय किसान, जो खेत के मेंड़ पर खड़ा हुआ है, उसके हाथ में कुदाल है और वह पानी लगा रहा है. तपती दोपहरी या कड़कते जाड़े में वह मेहनत करता है और कर्ज़ उतारने की कोशिश करता रहता है.

ग़ुरबत या ग़रीबी की जो विडंबना, उनका दुख दर्द प्रेमचंद जिस तरह बयान करते हैं वह कहीं और नहीं मिलता. मुझे 'पूस की रात' की कथा याद आती है.

और 'शतरंज के खिलाड़ी' याद आता है. लगता है कि उनकी नज़र कितनी गहरी थी. वो भारतीय इतिहास के कई बरसों को एक कहानी में किस ख़ूबी के साथ लकड़ी के मोहरों के सहारे से कह देते हैं.

'वो एक' कहानी में परत दर परत खुलती है. 'कफ़न' में कफ़न एक नहीं है दो हैं. एक तो वो है जिसके पैसे से माधो और घीसू ने शराब पी ली और दूसरा कफ़न वो है जिसे वो बच्चा ओढ़ कर सो गया जो अपनी ग़रीब माँ के पेट में था. इस पीड़ा को प्रेमचंद जिस तरह उभारते हैं वो कहीं और नहीं है.

वो गाँव और शहर के बीच जो दो दूरियाँ थीं उसे देखते थे. मैं तो कहता हूँ कि प्रेमचंद के यहाँ भारत की आत्मा बसती है.

बदला हुआ समय

प्रेमचंद ने जो एक गुज़रगाह बनाई थी हिंदी और उर्दू कथा साहित्य में उससे होकर बहुत से लोग आगे बढ़े. प्रगतिशील साहित्य में देखें तो मंटो, कृश्न चंदर, राजेंदर सिंह बेदी, इस्मत चुगताई ये सब वजूद में नहीं आ सकते थे अगर प्रेमचंद नहीं होते.

पहले तो आसान था कि ज़ुल्म करने वाला बाहर का साम्राज्य था लेकिन बाद की समस्या तो यह है कि ज़ालिम भी हमारे यहाँ है और मज़लूम भी हमारे यहाँ ही है, तो समस्याएँ गंभीर हो जाती हैं

इसके बाद का जो समय है वह नई तकनीकों का दौर है नई समस्याओं का दौर है. प्रेमचंद जिस आदर्श को लेकर चले थे उसमें गाँधीवाद था तो मार्क्सवाद भी था. लेकिन आज़ादी के बाद जिस तरह हमारे ख़्वाब टूटे हैं और जिस तरह हम नई समस्याओं से दो चार हुए हैं, उससे चीज़ें बदली हैं.

पहले तो आसान था कि ज़ुल्म करने वाला बाहर का साम्राज्य था लेकिन बाद की समस्या तो यह है कि ज़ालिम भी हमारे यहाँ है और मज़लूम भी हमारे यहाँ ही है, तो समस्याएँ गंभीर हो जाती हैं.

इसके बाद आधुनिकतावाद है, नव मार्क्सवाद है और बहुत सी नई समस्याएँ भी हैं. लेकिन अगर आप नव मार्क्सवाद को देखेंगे, आप दलितवाद को देखेंगे या आप नारीवाद को देखेंगे तो भी आपको प्रेमचंद के पास जाना पड़ेगा. मैं कहता हूँ कि वह एक सरचश्मा है, उससे नज़र हटाकर हम अपने आपको पहचान नहीं सकते.

भाषा की परंपरा

हिंदी और उर्दू दोनों बड़ी भाषाएँ हैं. आज भी बहुत से लेखक हैं जो दोनों ही भाषाओं में अधिकार पूर्वक लिखते हैं. यह कहना आसान है कि अंग्रेज़ों ने फूट डालो और राज करो की नीति का पालन किया लेकिन फूट का बीज तो हमारे बीच ही था.

लेकिन ये थोड़े दिनों की बात है. भारत एक गणतंत्र है और एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो इसमें कोई शक नहीं कि दोनों भाषाएँ एक होंगी. मैं कहता हूँ हिंदी वालों और उर्दू वालों दोनों से, कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों भाषाएँ एक हैं और ये दोनों इसके दो बड़े साहित्यिक रुप हैं. दो परंपराएँ हैं.

आख़िर जो बँटवारा हुआ और जिन बुनियादों पर हुआ है उसके बाद न सिर्फ़ राजनीति का सांप्रदायिकरण हुआ है बल्कि भाषा का भी सांप्रदायिकरण हुआ है. कोई नहीं पूछता कि मलयालम हिंदू की भाषा है या मुस्लिम की, मराठी किसकी भाषा है, लेकिन उर्दू को अलग करके खड़ा कर दिया गया है. उसका सांप्रदायिकरण कर दिया गया. इन सबकी वजह से हम प्रेमचंद की साँझी विरासत को पहचान नहीं पाते.

लेकिन ये थोड़े दिनों की बात है. भारत एक गणतंत्र है और एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो इसमें कोई शक नहीं कि दोनों भाषाएँ एक होंगी. मैं कहता हूँ हिंदी वालों और उर्दू वालों दोनों से कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों भाषाएँ एक हैं और ये दोनों इसके दो बड़े साहित्यिक रुप हैं. दो परंपराएँ हैं. चुनांचे आज भी ग़ालिब हों, फ़ैज़ हों, फ़राज़ हों, इस्मत हों सब नागरी में भी पढ़े जाते हैं और इसी तरह हिंदी के बड़े दिग्गज उर्दू में पढ़े जाते हैं. अभी निर्मल वर्मा की एक किताब कराची से छपकर आई है.

जो हौसला प्रेमचंद में था अगर उसका एक हिस्सा भी आज के लेखकों में पैदा हो जाए तो जो समस्याएँ हमें आज दो बड़ी भाषाओं के बीच मिलती हैं, जो अब दक्षिण एशिया की बड़ी भाषा है, वो ख़त्म हो जाएँगी. दरअसल हमारा जो 'लिंगुआ फ़्रैंक्वा' है वह तो हिंदुस्तानी है और उसके सबसे ब़ड़े हिमायती प्रेमचंद थे और गाँधी जिसके पक्षधर थे.

मैं मानता हूँ कि सपने ज़ाए नहीं होते. दोनों भाषाएँ मिलकर काम करेंगीं. जो घाव राजनीति लगाती है वो वक़्ती होते हैं, इंसानियत बहुत बड़ी ताक़त है.

मुझे लगता है कि जो प्रेमचंद की विरासत है, वही भारत की असली विरासत है.



Flu (influenza)

Flu (influenza)

Dr Rob Hicks

Flu is a viral infection that's most common during the winter months. It has a sudden onset of symptoms, which include fever, sore throat and muscle aches.


What is Flu (influenza)?

Influenza, more commonly known as flu, is a viral infection caused by the influenza virus. It's passed on when people breathe in liquid droplets containing the virus that have been sneezed or coughed into the air, or when people touch objects contaminated with the virus.

Possible complications include pneumonia, which often needs hospital treatment. It can be fatal.

The virus can cause infections all year round, but it's most common in the winter. Anyone can get flu and the more close contact a person has with people who have the virus, the more likely they are to get it.

Should I get vaccinated?

The UK has a safe and effective vaccination against flu, which is provided free by the NHS. It's recommended for people at greatest risk of harm from the flu virus.

People who are advised to have a flu vaccination include:

  • Everyone over the age of 65
  • Everyone aged six months or over who has lung disease (such as asthma), heart disease, kidney disease, liver disease, diabetes or lowered immunity
  • Anyone living in a residential or nursing home
  • People caring for those at risk of flu complications

Those most at risk are advised to have a vaccination every year. This is because the flu virus changes slightly every year. Scientists work hard to predict the strains of flu virus and develop vaccines against them.

Despite popular belief, flu vaccination can't give someone flu as it doesn't contain the active virus. It's true some people experience symptoms of a heavy cold at the same time or just after they've had the flu jab. This is simply a coincidence and the symptoms are usually caused by one of the many common cold viruses around in autumn and winter.

Remember, it's still possible to catch heavy colds after vaccination, as the flu jab only protects people from the flu virus, not other viruses.

The flu vaccination is ususally available from around October each year. Anyone who thinks they need it should talk to their GP or practice nurse.

Reducing your risk

The best way to avoid getting flu is to strengthen your immune system by eating a healthy diet, taking regular exercise, getting enough rest and relaxation, and not smoking.

You should also avoid people who are coughing and sneezing, especially if they're not covering their mouth and nose.

How can I tell if it's a cold or flu?

Flu strikes suddenly and affects the whole body. One minute you're happy at work, the next you've been knocked for six and are too ill to do anything. It lasts for about seven days and generally leaves you feeling exhausted for weeks after wards.

It's different from the common cold, in which the symptoms tend to come on gradually, usually affecting only the nose, throat, sinuses and upper chest. When someone has a cold, they're still able to get about and usually recover fully after about a week.

What's the treatment?

These are the best ways to treat the symptoms of flu:

  • Take plenty of rest because the body uses a lot of energy fighting infections
  • Keep warm
  • Make sure you drink plenty of water to avoid dehydration
  • Take paracetamol or anti-inflammatory medicines such as ibuprofen to lower a high temperature and relieve headaches and muscles aches
  • Drink hot water with lemon, ginger and honey

Antibiotics are no use to treat flu because it's caused by a virus

Antibiotics are no use to treat flu because it's caused by a virus. Specific antiviral treatments for flu are available, but generally these are only given to those at high risk of flu complications.

Advice on suitable remedies is available from your local pharmacist. Always contact your doctor if you're not getting better after a few days, if you're unduly short of breath or if you're coughing up blood or large amounts of yellow or green phlegm.

This article was last medically reviewed by Dr Rob Hicks in April 2008

स्वाइन फ़्लू पर विशेष

स्वाइन फ़्लू क्या है?

इंफ़्लुएंज़ा-A( H1 N1) को आम बोलचाल की भाषा में स्वाइन फ़्लू कहा जाता है.

स्वाइन फ्लू के शुरूआती मामले अब से करीब दो महीने पहले मैक्सिको में सामने आए थे. तब से अब तक लगभग सौ देशों में इस संक्रमण ने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है.

प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों से पता चला कि इस वायरस के जींस उत्तरी अमरीका के सूअरों में पाए जाने वाले जींस जैसे हैं इसलिए इसे स्वाइन फ़्लू कहा जाने लगा.

वैज्ञानिक भाषा में इस वायरस को इंफ़्लुएंज़ा-ए (एच1 एन1) कहा जाता है.

कैसे फैलता है स्वाइन फ़्लू?

शुरुआत में ये माना जा रहा था कि इसके संक्रमण में सूअरों की भूमिका होती है.

लेकिन बाद में पाया गया है कि ये इंसान से दूसरे इंसान के संपर्क में आने से फैलता है.

स्वाइन फ़्लू के लक्षण क्या हैं?

इसके लक्षण आम फ़्लू से मिलते जुलते ही हैं इसलिए इसकी पहचान खून की जाँच से ही संभव है.

वैसे इसके प्रमुख लक्षण हैं- सिर में दर्द, बुखार, गले में खराश, खांसी, बदन में दर्द, सांस लेने में दिक्कत.

वैज्ञानिकों को चिंता सता रही है कि भारत सहित जिन देशों में आजकल आम फ़्लू का सीज़न चल रहा है उसके वायरस के साथ मिलकर एच1एन1 परेशानी पैदा कर सकता है.

इसके गंभीर संक्रमण के कारण शरीर के कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं जिसके कारण मौत भी हो सकती है.

क्या इसका इलाज संभव है?

कुछ हद तक इसका इलाज संभव है. इसके मरीज़ों का उपचार टैमीफ़्लू नामक वायरसरोधी दवा से किया जा सकता है.

डॉक्टरों के अनुसार ये दवा इस फ़्लू को रोक तो नही सकतीं पर इसके ख़तरनाक असर को कम ज़रूर कर सकती है.

डॉक्टरों का कहना है कि इस समय वायरस इतना कमज़ोर है कि ज़्यादातर लोग बिना किसी दवा के उससे उबर जाते हैं.

इसके बचाव के क्या उपाय हैं?

स्वाइन प़्लू से बचने का सबसे अच्छा तरीका स्वच्छता के नियमों का पालन करना है.

भीड़-भाड़ वाली जगहों या सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बचें, खांसते और छींकते वक्त मुंह और नाक को रूमाल या कपड़े से ढंकें.

फ्ल़ू प्रभावित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखें और सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर तीनस्तरीय मास्क लगाएँ.

क्या इसका टीका उपलब्ध है?

स्वाइन फ़्लू को रोकने के लिए अभी तक कोई टीका नहीं विकसित हो पाया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की है कि सितंबर से स्वाइन फ़्लू का टीका आम लोगों को उपलब्ध हो सकेगा.

कई दवा निर्माता कंपनियों ने एच1एन1 टीका तैयार किया है और कई देशों में इसका परीक्षण चल रहा है.